यहां दिए गए कानून उपलब्ध संसाधन हैं, लेकिन कृपया ध्यान दें कि मेरी ज्ञान सीमा 2021 से पहले की है और अद्यतन किए गए कानूनों के बारे में अवगत नहीं हूँ। इसलिए, नवीनतम विवरण के लिए संबंधित सरकारी और कानूनी संसाधनों का संदर्भ लें।
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955: यह अधिनियम हिन्दू धर्म के अनुसार विवाह और तलाक के मामलों को व्यवस्थित करता है। इसमें तीन प्रकार के तलाक शामिल हैं - त्रिवेणी तलाक (तीन तलाक), ईरा तलाक (आदेश द्वारा तलाक) और खुला (पत्नी के आरोप के आधार पर पति द्वारा तलाक)।
मुस्लिम शरीयत अधिनियम, 1937: यह अधिनियम मुस्लिम व्यक्तियों के विवाह, तलाक और विवाह तोड़ने के मामलों को व्यवस्थित करता है। इसमें शोषण तलाक, खुला, तलाक-ए-तफवीज (पत्नी द्वारा तलाक) और तलाक-ए-तदव्वुल (सहमति के आधार पर तलाक) जैसे तलाक प्रकार शामिल हैं।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954: यह अधिनियम ईसाई और यहूदी समुदाय के सदस्यों के लिए विवाह, तलाक और विवाह तोड़ने की प्रक्रिया को निर्धारित करता है।
सीमांत विवाह अधिनियम, 1955: यह अधिनियम सीमांत जाति के व्यक्तियों के विवाह, तलाक और विवाह तोड़ने के मामलों को संघटित करता है।
विशेष विवाह (पूर्वांचल) अधिनियम, 1948: यह अधिनियम पूर्वांचल क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों के विवाह, तलाक और विवाह तोड़ने की प्रक्रिया को निर्धारित करता है।
इन अधिनियमों के अलावा, सुप्रीम कोर्ट द्वारा कुछ प्रमुख न्यायालय निर्णय और न्यायाधीशों द्वारा तलाक संबंधी मुद्दों पर दिए गए निर्णय भी महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में तीन तलाक पर रोक लगाने और उसे गैर-कानूनी घोषित करने का निर्णय लिया था।
पत्नी द्वारा तलाक देने पर भत्ता संबंधी कानून
हिन्दू विवाह अधिनियम में पत्नी द्वारा तलाक देने पर पति को कोई भत्ता नहीं दिया जाता है। यदि पत्नी तलाक देना चाहती है, तो वह ईरा तलाक का प्रयोग कर सकती है। ईरा तलाक में पति द्वारा तलाक देने के बाद, कोई भत्ता नहीं दिया जाता है और विवाह खत्म हो जाता है।
इसके अलावा, धारा 25 और 26 में विवाह तोड़ने के मामलों में पति को किसी विशेष प्रकार का भत्ता नहीं दिया जाता है। धारा 25 के तहत, यदि पति विवाह तोड़ने की याचिका दायर करता है, तो उसे न्यायालय को यदि आवश्यक समझता है तो पत्नी के लिए निर्धारित आर्थिक सहायता प्रदान कर सकता है। धारा 26 में भी पति को विवाह तोड़ने के मामले में कोई भत्ता नहीं दिया जाता है।
बच्चो के पालन पोषण संबंधित कानून
हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार, पत्नी द्वारा तलाक देने पर बच्चों के पालन-पोषण के मामले पर ध्यान दिया जाता है। इसके लिए अधिनियम में धारा 26 और 27 मौजूद हैं, जो निम्नलिखित विवरण प्रदान करती हैं:
धारा 26: यदि तलाक हो जाती है, तो इस धारा के अनुसार, न्यायालय बच्चों के पालन-पोषण के लिए उचित और यथायोग्य निर्णय लेता है। न्यायालय बच्चों के हितों, आयु, शिक्षा, वारसत, और अन्य संबंधित परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उचित निर्णय लेता है। इस निर्णय के तहत, न्यायालय बच्चों के लिए निर्धारित आर्थिक सहायता, देखभाल और पालन-पोषण की जिम्मेदारी को तय करता है।
धारा 27: यदि तलाक के समय पत्नी गर्भवती होती है, तो इस धारा के तहत न्यायालय गर्भवती महिला और उनके आगामी बच्चे की देखभाल को ध्यान में रखते हुए उचित निर्णय लेता है। यह निर्णय गर्भवती महिला की आवश्यकताओं, आयु, आर्थिक स्थिति, बच्चे के हितों और अन्य परिस्थितियों के आधार पर लिया जाता है।
इन धाराओं के अनुसार, न्यायालय बच्चों के हितों और विकास को महत्वपूर्ण मानते हुए उचित निर्णय लेता है। यह आर्थिक सहायता, शिक्षा, बच्चे की देखभाल और पालन-पोषण की जिम्मेदारी को सुनिश्चित करने के लिए हो सकता है।
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 में तलाक के लिए कुछ शर्तें व्यवस्थित की गई हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण शर्तें हैं:
तलाक संबंधी शर्ते
तलाक के प्रकार: हिन्दू विवाह अधिनियम में तीन प्रकार के तलाक शामिल हैं - त्रिवेणी तलाक (तीन तलाक), ईरा तलाक (आदेश द्वारा तलाक) और खुला (पत्नी के आरोप के आधार पर पति द्वारा तलाक)। ये तलाक के प्रकार अलग-अलग शर्तों और प्रक्रियाओं के साथ मान्यता प्राप्त करते हैं।
तलाक के लिए उपयोग्य कारण: तलाक के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम में कुछ उपयोग्य कारणों की व्यवस्था है, जैसे कि दांपत्य विवाद, असहमति, अत्याचार, विश्राम अवधि की अवहेलना आदि। इन कारणों के आधार पर तलाक की मांग की जा सकती है।
तलाक की प्रक्रिया: तलाक की प्रक्रिया में भी कुछ शर्तें होती हैं। यह शर्तें संविधान और अधिनियम के मानकों के अनुसार होती हैं और विवाह अधिनियम में व्यवस्थित की गई हैं। तलाक की प्रक्रिया में पति या पत्नी को नियमित रूप से सूचित करना, समय की अवधि, देखभाल और पालन-पोषण के मामले, साक्षीयों की मौजूदगी, न्यायालय में मामला दाखिल करने की प्रक्रिया आदि शामिल हो सकती है।
पति के भत्ते की व्यवस्था: हिन्दू विवाह अधिनियम में, पत्नी द्वारा तलाक देने पर पति को कोई भत्ता नहीं दिया जाता है। इससे पहले अधिनियम में, पत्नी द्वारा तलाक देने पर पति को न्यायालय द्वारा निर्धारित आर्थिक सहायता या भत्ता प्रदान किया जाता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद इस प्रक्रिया में परिवर्तन हुआ है।
कृपया ध्यान दें कि यह जानकारी मेरी ज्ञान सीमा 2021 से पहले की है, और नवीनतम अद्यतनों के लिए संबंधित सरकारी और कानूनी स्रोतों की जांच करें।